परिचय

शनिवार, 29 जून 2019

दुनिया मुट्ठी में!

दुनिया मुट्ठी में!

उसने कहा-
"कर लो दुनिया मुट्ठी में!"
सभी ने-
मुट्ठियाँ बंद कर लीं!
यूँ लगा-
जीवन की सारी खुशियाँ
अलाद्दीन के
चिराग में भर लीं।
अब हमें-
नहीं चाहिए
वो दीवार घड़ी
जो बीते समय का अहसास कराये
नहीं चाहिए
वो कैमरा-
जो जीवन की सच्ची तस्वीर दिखाये
और नहीं चाहिए
माँ के पल्लू में बधा मुड़ा-तुड़ा नोट
जो अपनेपन का अहसास कराये।
अब हमारे पास-
 मायावी सपने हैं
बेगाने से अपने हैं
न जाने हम कहाँ खो गये हैं
कहने को तो साथ- साथ हैं
पर सच में,बहुत दूर हो गये हैं।
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