मेरे जीवन के खट्टे-मीठे
अनुभवों की काव्यात्मक
अभिव्यक्ती का संग्रह हॆ-
यह ’नया घर’.
हो सकता हॆ मेरा कोई अनुभव
आपके अनुभव से मेल खा जाये-
इसी आशा के साथ ’नया घर’
आपके हाथों में.
परिचय
गुरुवार, 24 मई 2007
नकाब
मॆंने- सिलवाकर रखे हॆं कई नकाब। जॆसे भी माहॊल में जाता हूं वॆसा ही- नकाबपोश हो जाता हूं। तब लोग-मुझे नहीं मेरे नकाब को जानते हॆं। ऒर- मेरी हर बात को पत्थर की लकीर मानते हॆ। *******
7 टिप्पणियां:
बहुत खूब!
अच्छा है
अच्छा है!
क्या बात है.
बहुत थोड़े में .. आज की बनावटी जिंदगी का सच कह दिया.........
आज का सच यही है।बहुत बढियां लिखा है।
परदे के पीछे सत्य के अर्थ को कोई जानकर भी नहीं जानना चाहता…बहुत अच्छे!!!
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