मजबूत सीढी
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मॆं भी
अपनी इन बंद मुट्ठियों में
भर सकता हूं
सफलता का सम्पूर्ण इतिहास।
बन सकता हूं
चमकता सितारा
या फिर-
आकाश।
कोई मजबूत सी सीढी
मिल जाये
काश!
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मेरे जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों की काव्यात्मक अभिव्यक्ती का संग्रह हॆ- यह ’नया घर’. हो सकता हॆ मेरा कोई अनुभव आपके अनुभव से मेल खा जाये- इसी आशा के साथ ’नया घर’ आपके हाथों में.
परिचय
शुक्रवार, 29 जून 2007
मंगलवार, 26 जून 2007
तीन किस्म के जानवर
इस जंगल में
तीन किस्म के जानवर हॆं
पहले-
रॆंगते हॆं
दूसरे-
चलते हॆं
तीसरे-
दॊडते हॆं।
रॆंगने वाले-
चलना चाहते हॆं
चलने वाले-
दॊडना चाहते हॆं
लेकिन-
दॊडने वाले !
स्वयं नहीं जानते
कि वे
क्या चाहते हॆं?
**********
तीन किस्म के जानवर हॆं
पहले-
रॆंगते हॆं
दूसरे-
चलते हॆं
तीसरे-
दॊडते हॆं।
रॆंगने वाले-
चलना चाहते हॆं
चलने वाले-
दॊडना चाहते हॆं
लेकिन-
दॊडने वाले !
स्वयं नहीं जानते
कि वे
क्या चाहते हॆं?
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रविवार, 24 जून 2007
धीरे चलो
धीरे चलो
======
धीरे चलो
जरुर चलो
लेकिन इतना नहीं
कि-
जिन्दगी की हर दॊड में
सबसे पीछे रह जाऒ.
*********
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धीरे चलो
जरुर चलो
लेकिन इतना नहीं
कि-
जिन्दगी की हर दॊड में
सबसे पीछे रह जाऒ.
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बुधवार, 6 जून 2007
सच्चा neता
सच्चा राष्ट्र-नेता
==========
अध्यापक ने-
छात्र से पूछा-
बताऒ बेटा
किसे कहते हॆं?
सच्चा राष्ट्र-नेता.
छात्र बोला-
गुरू- जो छोटी बात पर
लम्बा भाषण देता हॆ,
बहुत कुछ लेता हॆ
पर कुछ नहीं देता हॆ
समझो-
वही सच्चा राष्ट्र नेता हॆ.
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अध्यापक ने-
छात्र से पूछा-
बताऒ बेटा
किसे कहते हॆं?
सच्चा राष्ट्र-नेता.
छात्र बोला-
गुरू- जो छोटी बात पर
लम्बा भाषण देता हॆ,
बहुत कुछ लेता हॆ
पर कुछ नहीं देता हॆ
समझो-
वही सच्चा राष्ट्र नेता हॆ.
सोमवार, 4 जून 2007
हे मेरे परम-पूज्य anधविश्वासी पिता !
हे मेरे परम-पूज्य अंधविश्वासी पिता !
कम से कम
अपने बुढापे का
मेरी जवानी का
कुछ तो ख्याल किया होता
सुरसा-मुख-सम
बढती जा रही
इस मंहगाई के युग में,
ज्यादा नहीं,
सिर्फ एक
अक्ल का काम किया होता.
बजाय-
इस क्रिकेट टीम के
चार सदस्यों का
सुखमय हमारा संसार होता.
खुद खा सकता
हमें खिला सकता
खुद डूबा
मुझे भी ले डूबा.
काश !
हमारी भूमिकाएं बदल जाती
जो हुआ
शायद वो सब न होता.
हे मेरे परम-पूज्य अंधविश्वासी पिता !
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कम से कम
अपने बुढापे का
मेरी जवानी का
कुछ तो ख्याल किया होता
सुरसा-मुख-सम
बढती जा रही
इस मंहगाई के युग में,
ज्यादा नहीं,
सिर्फ एक
अक्ल का काम किया होता.
बजाय-
इस क्रिकेट टीम के
चार सदस्यों का
सुखमय हमारा संसार होता.
खुद खा सकता
हमें खिला सकता
खुद डूबा
मुझे भी ले डूबा.
काश !
हमारी भूमिकाएं बदल जाती
जो हुआ
शायद वो सब न होता.
हे मेरे परम-पूज्य अंधविश्वासी पिता !
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