मेरे जीवन के खट्टे-मीठे
अनुभवों की काव्यात्मक
अभिव्यक्ती का संग्रह हॆ-
यह ’नया घर’.
हो सकता हॆ मेरा कोई अनुभव
आपके अनुभव से मेल खा जाये-
इसी आशा के साथ ’नया घर’
आपके हाथों में.
परिचय
मंगलवार, 26 जून 2007
तीन किस्म के जानवर
इस जंगल में तीन किस्म के जानवर हॆं पहले- रॆंगते हॆं दूसरे- चलते हॆं तीसरे- दॊडते हॆं। रॆंगने वाले- चलना चाहते हॆं चलने वाले- दॊडना चाहते हॆं लेकिन- दॊडने वाले ! स्वयं नहीं जानते कि वे क्या चाहते हॆं? **********
2 टिप्पणियां:
कमाल करते हैं, हद है,
दौड़ने वाले उड़ने वालों को देखते हैं...
इतनी कविता नहीं बनी आपसे.
विद्रोही जी,
टिप्पणी के लिए धन्यवाद.उक्त कविता लगभग 20 साल पहले लिखी थी.उस समय जॆसी मन:स्थिती थी वॆसी लिखी गई.
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