मेरे जीवन के खट्टे-मीठे
अनुभवों की काव्यात्मक
अभिव्यक्ती का संग्रह हॆ-
यह ’नया घर’.
हो सकता हॆ मेरा कोई अनुभव
आपके अनुभव से मेल खा जाये-
इसी आशा के साथ ’नया घर’
आपके हाथों में.
परिचय
शुक्रवार, 7 सितंबर 2007
चुप्पी
उन्हें- कहने दीजिये हमें चुप्प रहने दीजिये. उनका- कुछ भी कहना- व्यर्थ हॆ जब तक आदमी शतर्क हॆ. हमारी चुप्पी का भी एक विशेष अर्थ हॆ. ============
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