परिचय

मंगलवार, 4 सितंबर 2007

वेतन आयोग

सरकारी दफ्तर के
अफसर ऒर बाबू
जिनपर खुद सरकार का
नहीं हॆ काबू.
आजकल-
फूले नहीं समा रहे हॆं
वेतन-आयोग की राह में
पलकें बिछा रहे हॆं.
साहब का-
बुझा-बुझा चेहरा
खिला-खिला नजर आता हॆ
अधेड हॆड-क्लर्क भी
प्रेम-गीत गाता हे.
फाईलों के ढेर को देखकर
आसमान सिर पर उठाने वाला बाबू
’राम’को ’रामलाल जी’ कहकर बुलाता हॆ.
साहब की स्टॆनॊ
मन ही मन मुस्कराती हॆ
दिन में कई-कई बार
बढने वाले वेतन का
हिसाब लगाती हॆ.
सदा ऊंघने वाला चपरासी
सावधान नजर आता हॆ
’मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू’
यही गीत गाता हॆ.
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1 टिप्पणी:

राजीव तनेजा ने कहा…

द होल थिंग इज़ दैट के भैय्या...

सबसे बडा रुपैय्या