’अंग्रेज चले गये’
’अब हम आजाद हॆं’
-दादाजी ने कहा
-पिता ने भी कहा
- मां ने समझाया
- भाई ने फटकारा
लेकिन वह-
चुप रहा।
दादाजी ने-
घर पर/ दिन-भर
अंग्रेजी का अखबार पढा।
पिता ने-
दफ्तर में/चपरासी को
अंग्रेजी में फटकारा।
मां ने-
स्कूल में/भारत का इतिहास
अंग्रेजी में पढाया।
भाई ने-
खादी-भंडार के
उदधाटन समारोह में
विलायती सूट पहनकर
खादी का महत्व समझाया।
ऒर-
उसने कहा-
’थूं’
सब बकवास हॆ।
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3 टिप्पणियां:
अंग्रेज ही तो गये हैं, अंग्रजी थोड़ी. आप भी तो समझते नहीं.
--आजकल कम क्यूँ दिख रहे हैं?
"भाई ने-
खादी-भंडार के
उदधाटन समारोह में
विलायती सूट पहनकर
खादी का महत्व समझाया।"
बहुत अच्छा, मन को भेद देने वाला, व्यंग. लिखते रहें -- शास्त्री जे सी फिलिप
आज का विचार: हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस विषय में मेरा और आपका योगदान कितना है??
मन तक को कचोट सकने की ताकत रखने वाला करारा व्यंग्य....
बधाई....
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