परिचय

गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

मंहगाई ऒर नया साल

मंहगाई ऒर नया-साल


-विनोद पाराशर-

हमने कहा-

नेताजी! मंहगाई का हॆ बुरा हाल

बीस रुपये किलो आटा

अस्सी रुपये दाल

मुबारक हो नया साल.

देसी घी का दिया-

सिर्फ प्रभु के सामने जला रहे हॆं

ऒर-हम खुद!

सूखे टिक्कड चबा रहे हॆं.

बच्चों को-

दूध नहीं/चाय पिला रहे हॆं

रो-धोकर-

गृहस्थी की गाडी चला रहे हॆं.

पांच रुपये वाला सफर

अब दस में तय होता हॆ

सच कहूं!

मन-अन्दर ही अन्दर रोता हॆ.

इस नये साल में-

कुछ तो कीजिये

थोडी-बहुत राहत

हमें भी दीजिये.

वो बोले-थोडा सब्र कीजिये!

इस नये साल में-

हम एक नयी योजना बना रहे हॆं

प्राचीन संस्कृति फिर से ला रहे हॆं

हमारे पूर्वजों ने-

पूरी जिंदगी बिता दी

सिर्फ एक लंगोट में

आप घूमते हॆं

हर रोज/नये पॆंट-कोट में.

दर-असल!

कम कपडों में रहना

एक कला हॆ

इसमें/हम सभी का भला हॆ.

इस कला का प्रचार-

हर शहर/हर गांव में करवायेंगें

इस शुभ काम के लिए-

आदरणीय

’मल्लिका सेहरावत’ जी को बुलवायेंगे.

हमारे ऋषियों ने कहा हॆ-

कम खाओ, ज्यादा पीओ

लंबा जीवन जीओ.

हम भी कहते हॆं-

कम खाईये,ज्यादा पीजिये

अपनी सुविधानुसार-

बोतल,अद्धा,पव्वा या पाउच लीजिये.

कुछ लोग-

आरोप लगाते हॆं

कि-हम

सिर्फ अमीरों को ही पिलाते हॆं.

इस नये साल में-

हम-

हर शहर,हर गांव व हर गली में

यह सुविधा उपलब्ध करवा रहे हॆं

’विदेशी ब्रांड’ का अच्छा माल

समाज के हर तबके के लिए ला रहे हॆं.

जरा पीकर तो देखिये-

ऎसा मजा आयेगा!

मंहगाई,बेरोजगारी व गरीबी जॆसा-भयानक सपना

आपको कभी नहीं डरायेगा.

हम तो कहते हॆं-

खुद भी पीजिये

ऒरों को पिलाइये

सभी को प्रेम से गले लगाइये

नये साल का जश्न हॆ

जरा धूम-धाम से मनाइये.

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शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

आ गई दिवाली !



चेहरे पर मुस्कराहट चिपकी,मन अंदर से खाली-खाली


चारों ओर घुप्प-अंधेरा ,वो कहते आ गयी दिवाली

कहां गये वो खील-बतासे,कहां गये वो खेल-तमाशे?

कमर-तोड मंहगाई ने,कर दी सबकी हालत माली

कहने को साथ-साथ हॆं,हो जाती हर रात बात हॆ

फिर भी क्यों लगता हॆ? सब कुछ हॆ जाली-जाली.

इन्टरनेट के इस दॊर में,तू भी एक ई-मेल भेज दे

उसके पास समय कहां हॆ,चल बस हो गयी दिवाली.

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बुधवार, 26 अगस्त 2009

गुलाब



कई बार
चाहा हॆ
तेरे नर्म होंठों पर
रख दूं,
अपने
गर्म होंठ.
तेरी खुशबू को
बसा लूं
अपने दिल में.
ऒर पी जाऊं
तेरी सुन्दरता को
इन नयनों से
हाला समझकर.
लेकिन-
तेरे
जिस्म के चारों ओर
खडे पहरेदारों को देखकर
सहम जाता हूं
ऎ! गुलाब.

रविवार, 16 अगस्त 2009

लुटते हुए देश को बचाओ साथियो !


लुटते हुए देश को बचाओ साथियों!

कदम से कदम मिलाओ साथियों,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियों.

कोना-कोना देश का जल रहा हॆ,
शासन-तंत्र जनता को छल रहा हॆ,
कॆसी-कॆसी चालें यह चल रहा हॆ,
अंधेरे में रहे क्यों?बताओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.

इधर देखो कुत्ता बिस्कुट चाट रहा हॆ,
उधर देखो मजदूर भूखा हांफ रहा हॆ,
कपडे़ बुनने वाला खुद कांप रहा हॆ,
ऎसा भेद-भाव क्यों? बताओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.

खुले-आम चोर-लुटेरे घूम रहे हॆं,
मां-बहनों की इज्ज़त लूट रहे हॆं,
पुलिस वाले निर्दोषों को पीट रहे हॆं,
सहें यह अत्याचार क्यों?बताओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.

पढना-लिखना आज का बेकार हो गया,
शिक्षा जॆसा कर्म भी व्यापार हो गया,
विधालय भी भ्रष्टाचार का शिकार हो गया,
ऎसा शिक्षा-तंत्र क्यों?बताओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.

ऎरे-गॆरे नत्थू खॆरे,सन्तरी हो गये
जेल में होना था जिन्हें,मंत्री हो गये
बन्दूकों के व्यापारी भी तंत्री हो गये
इनके चेहरे से नक़ाब उठाओ साथियो
लुटते हुए देश को,बचाओ साथियो.

कॊन कहता देश यह आज़ाद हो गया?
पहले से भी ज्यादा यह गुलाम़ हो गया
अपने ही कुछ लुटेरों से,बर्बाद हो गया,
नयी कोई मशाल अब,जलाओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.
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