मॆं-नहीं चाहता
कि तुम
ऒपचारिकता का लिबास पहनकर
मेरे नजदीक आओ.
अपने होठों पर
झूठ की लिपिस्टिक लगाकर
सच को झुठलाओ
या देह-यष्टि चमकाने के लिए
कोई सुगंधित साबुन
या इत्र लगाओ.
मॆं-चाहता हूं
कि तुम
अपनी असली झिलमिलाहट के साथ
मुझसे लिपट जाओ.
मेरे सुसुप्त भावों को
कामदेव-सा जगाओ
ओर फिर-
दो डालें
हवा में लहराने लगें
होती हुई एकाकार.
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मेरे जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों की काव्यात्मक अभिव्यक्ती का संग्रह हॆ- यह ’नया घर’. हो सकता हॆ मेरा कोई अनुभव आपके अनुभव से मेल खा जाये- इसी आशा के साथ ’नया घर’ आपके हाथों में.
परिचय
रविवार, 30 दिसंबर 2007
शनिवार, 29 दिसंबर 2007
सुनाओ अपना हाल जी,मुबारक नया साल जी.
सुनाओ अपना हाल जी,
मुबारक नया साल जी
तुम्हारी बढती तोंद क्यों?
हमारे पिचके गाल जी.
तुम तो खाऒ हलवा-पूरी
मजा न आये बिन अंगूरी
इच्छा हो जाये सारी पूरी
हमको रोटी-दाल जी
सुनाओ अपना हाल जी
मुबारक नया साल जी.
कॆसे मोटे हो गये लाला?
देश का क्यों निकला दिवाला?
जरुर दाल में कुछ हॆ काला
उठते बहुत सवाल जी
सुनाओ अपना हाल जी
मुबारक नया साल जी.
’गांधी-बाबा’ तुम भोले थे
’अहिंसा’पर क्यों बोले थे
वो सपने क्या सलॊने थे
यहां तो रोज होते हलाल जी
सुनाओ अपना हाल जी
मुबारक नया साल जी.
यह आजादी धोखा हॆ
कुर्सी का खेल अनोखा हॆ
खून किसी ने शोखा हॆ
’जोखें’ करे कमाल जी
सुनाओ अपना हाल जी
मुबारक नया साल जी.
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शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007
आज बहुत सर्दी हॆ
आज बहुत सर्दी हॆ
पक्षियों का चहचहाना,
फूलों का मुस्कराना,
ऒर-कोयल की कूक से,
मंत्र-मुग्ध हो जाना,
खत्म हो गया हॆ.
आज बहुत सर्दी हॆ
रामलाल-
सेठ के यहां,
मजदूरी कम मिलने पर,
नहीं चिल्लायेगा,
चुपचाप आ जायेगा.
आज बहुत सर्दी हॆ
शरीर का हर अंग
शून्य हो गया हॆ,
तभी तो-
किसी अंग के
काट दिये जाने पर भी
दर्द नहीं होता.
आज बहुत सर्दी हॆ
सब-कुछ बर्फ हो गया हॆ,
रक्त जम गया हॆ,
तभी तो-
किसी कली को कुचला देख,
हमारा खून नहीं खोलता.
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पक्षियों का चहचहाना,
फूलों का मुस्कराना,
ऒर-कोयल की कूक से,
मंत्र-मुग्ध हो जाना,
खत्म हो गया हॆ.
आज बहुत सर्दी हॆ
रामलाल-
सेठ के यहां,
मजदूरी कम मिलने पर,
नहीं चिल्लायेगा,
चुपचाप आ जायेगा.
आज बहुत सर्दी हॆ
शरीर का हर अंग
शून्य हो गया हॆ,
तभी तो-
किसी अंग के
काट दिये जाने पर भी
दर्द नहीं होता.
आज बहुत सर्दी हॆ
सब-कुछ बर्फ हो गया हॆ,
रक्त जम गया हॆ,
तभी तो-
किसी कली को कुचला देख,
हमारा खून नहीं खोलता.
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मंगलवार, 18 दिसंबर 2007
ओ मेरे अंकल! ओ मेरे नाना!! गया वो जमाना
ओ मेरे अंकल! ओ मेरे नाना!!
गया वो जमाना,गया वो जमाना
मोटा पहनना ऒर सादा खाना
गया वो जमाना,गया वो जमाना.
भजन-कीर्तन छोडो.’ईलू-ईलू’ गाओ
घर से कालेज कहकर ,पिक्चर में घुस जाओ
काहे का गाना,काहे का बजाना
ओ मेरे अंकल!ओ मेरे नाना.........
अरे! ’हलवा-पूरी’ छोडो,’फास्ट-फूड’खाओ
चार दिन की जिंदगी,खूब मॊज उडाओ
फाईफ-स्टार होटल में खाओ खाना
ओ मेरे अंकल!ओ मेरे नाना........
’राम-राम’ छोडो,’टाटा-बाय’ बोलो
जिससे हो मतलब,उसके पीछे होलो
अन्दर की बात को,कभी बाहर नहीं लाना
ओ मेरे अंकल! ओ मेरे नाना.......
गॆर हुआ वो,जो था कभी अपना
मुश्किल हो गया ’राम-नाम’जपना
हे ऊपरवाले! हो सके तो नीचे आना
ओ मेरे अंकल! ओ मेरे नाना.......
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