परिचय

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

आ गई दिवाली !



चेहरे पर मुस्कराहट चिपकी,मन अंदर से खाली-खाली


चारों ओर घुप्प-अंधेरा ,वो कहते आ गयी दिवाली

कहां गये वो खील-बतासे,कहां गये वो खेल-तमाशे?

कमर-तोड मंहगाई ने,कर दी सबकी हालत माली

कहने को साथ-साथ हॆं,हो जाती हर रात बात हॆ

फिर भी क्यों लगता हॆ? सब कुछ हॆ जाली-जाली.

इन्टरनेट के इस दॊर में,तू भी एक ई-मेल भेज दे

उसके पास समय कहां हॆ,चल बस हो गयी दिवाली.

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