परिचय

रविवार, 19 अक्तूबर 2008

्सुख ऒर दु:ख

हम-
यह जानकर
बहुत सुखी हॆं
कि-दुनिया के ज्यादातर लोग
हमसे भी ज्यादा दु:खी हॆं.
पिता-
इसलिए दु:खी हॆ-
कि बेटा कहना ही नहीं मानता
बेटे का दु:ख-
कॆसा बाप हॆ?
बेटे के जज्बात ही नहीं जानता.
मां-
इसलिए दु:खी हॆ-
कि जवान बेटी
रात को देर से घर आती हॆ
बेटी का दु:ख-
शक की सुई-
हमेशा उसी के सामने आकर
क्यों रूक जाती हॆ?
पति-
इसलिए दु:खी हॆ-
कि-उसकी पत्नि
स्वयं को समझदार
ऒर उसे बेवकूफ मानती हॆ
उसकी मां को-
उससे ज्यादा वह जानती हॆ
पत्नी का दु:ख-
उसका पति-
अभी तक भी-
अपनी कमाई-
अपने मां-बाप पर लुटा रहा हॆ
उसे अपने बच्चों का भविष्य
अंधकारमय नजर आ रहा हॆ.
मालिक -
इसलिए दु:खी हॆ-
कि-नॊकर
हराम की खा रहा हॆ
नॊकर का दु:ख-
जी-तोड मेहनत के बाद भी
घर नहीं चल पा रहा हॆ.
ये भी दु:खी हॆं
वो भी दु:खी हॆं
ऒर हम-
यह जानकर-बहुत सुखी हॆं
कि-दुनिया के ज्यादातर लोग
हमसे भी ज्यादा दु:खी हॆ.
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रविवार, 10 अगस्त 2008

कहां से चले थे,कहां जा रहे हो ?


कहां से चले थे, कहां जा रहे हो? -विनोद पाराशर-
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क्यों?
बहुत खुश नजर आ रहे हो
स्वतंत्रता की वर्ष-गांठ मना रहे हो
लेकिन-
जरा ये भी तो सोचो
कहां से चले थे, कहां जा रहे हो?
झोंपडी की जगह-
आलीशान बंगला बना लिया
दाल-रोटी छोड दी
फ़ास्ट-फूड खा लिय़ा
कुर्ता-पाजामा छोडकर
फांसी वाला फंदा
गले में लगा रहे हो.
क्यों? बहुत..................जा रहे हो?
दो-चार कदम चलना भी
मुश्किल हो गया हॆ
किसी को ’यामहा’
तो किसी को ’मारुती’ से
प्यार हो गया हॆ.
बॆल-गाडी छोडकर
हवाई-जहाज उडा रहे हो.
क्यों?बहुत..................जा रहे हो?
बाप को डॆड
मां को मम्मी
चाचा,फूफा,मांमा को -अंकल
चाची,फूफी,मांमी को-आंटी
कहकर-
रिश्तों को उलझा रहे हो.
क्यों? बहुत.................जा रहे हो?
सोने के समय जगना
जगने के समय सोना
सेहत हुई खराब-
तो फिर-
डाक्टर के आगे रोना.
खुशहाल जिंदगी को
गमगीन बना रहे हो.
क्यों?बहुत..................जा रहे हो?
स्वतंत्रता को अर्थ-
तुम कुछ ऒर-
वो कुछ ऒर लगा रहे हॆं
शायद इसलिए-
लोकतंत्र के मंदिर में
असुर उत्पात मचा रहे हॆं.
असुर-संग्राम के लिए-
किसी भगतसिंह को बुला रहे हो.
क्यों?बहुत.................जा रहे हो?
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मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

आज हिन्दी में ब्लागिंग का एक साल पूरा

मित्रों!
आज आप सभी के मार्ग-दर्शन ऒर सहयोग से हिन्दी-ब्लागिंग की दुनिया में मुझे एक साल पूरा हो गया हॆ.आज के दिन एक वर्ष पूर्व जब मॆंने ब्लागिंग की दुनिया में कदम रखा था, तो उस समय न तो मुझे कम्प्यूटर के संबंध में कोई तकनिकी जानकारी थी ऒर न ही अंग्रेजी भाषा में महारत हासिल थी(अभी भी नहीं हॆ),बस! एक भूत सवार था कि कुछ करना हॆ.श्रीश शर्मा(ई-पण्डित),रवि-रतलामी व शास्त्री जी फिलीप जॆसे तकनिकी गुरुऒं के आशिर्वाद से हिन्दी लेखन के संबंध में (वो भी बिना हिन्दी टंकन की जानकारी के)जो जानकारी मुझे मिली,उसी के आधार पर आज मेरे पास तीन ब्लाग हॆं-नया-घर,हस-गुल्ले व नास्तिक की डायरी.’नया-घर’ में, मेरी अभी तक की लिखी गयी नयी व पुरानी कवितायें हॆ.’हस-गुल्ले’पूरी तरह से हास्य-व्यंग्य को समर्पित ब्लाग हॆ, जिसमें मेरा कोई व्यंग्य-लेख भी हो सकता हॆ अथवा कोई सुना-सुनाया चुटकुला भी.
रही बात ’नास्तिक की डायरी’ की.उसमें अभी कुछ खास नहीं लिख पाया हूं.
मॆं, मूल रुप से अपने-आप को, साहित्य से जुडा हुआ व्यक्ति मानता हूं.ब्लागिंग के जरिये जिन साहित्यिक मित्रों से लेखन में मुझे बिशेष रुप से प्रोत्साहन मिला-उनमें घूघूती जी,उडन-तश्तरी वाले भाई समीरलाल जी,परमजीत बाली जी,सुनिता शानू जी( अन्य बहुत से मित्र जिनका नाम मुझे इस समय याद नहीं आ रहा हॆ)ने मेरी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देकर मेरा उत्साह बढाया.जिन साथियों ने मेरे ब्लाग पर आकर, समय-समय पर मेरी हॊसलाअफजाई की,उन सभी के नामों का उल्लेखं मॆं समयाभाव के कारण नहीं कर पा रहा हूं-इसलिए-अन्यथा न लें.आगे भी इसी तरह सहयोग बनाये रक्खें.
अच्छा ! शुभ रात्री !!

शनिवार, 22 मार्च 2008

कवि सप्लाई केन्द्र

कवि सप्लाई केन्द्र
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जब इस बार भी-
बिजनिस में हुआ घाटा
तो हमारे ’मनि-माइन्डिड बाप’ ने
हमें डाटा.
बोला-"दो साल में दस ट्रेड बदल चुके हो
जितनी जमा पूंजी थी,सब निगल चुके हो
क्या इसी तरह नाम रोशन करोगे?
यही हाल रहा तो बेटा भूखे मरोगे."
हमें भी बहुत गुस्सा आया
कई दिन तक तो खाना ही नहीं खाया.
अचानक!
हमारे कबाड़ी माइन्ड में
एक धांसू आइडिया आया-
जिसके अनुसार-
हमने अपने मॊहल्ले में
एक ’कवि सप्लाई केन्द्र’ खुलवाया.
एक लम्बा-चॊड़ा बोर्ड लगवाया
जिसपर लिखवाया-
जन्म-दिन हो या शादी
बडे धूम-धाम से मनाईये
डी-जे, डिस्को की जगह
कवि-सम्मेलन करवाइये.
मजबूत,सस्ते व टिकाऊ कवि
हमारे यहां से ले जाईये.
जहां तक विशेष प्रकार के आयोजनों का संबंध हॆ
उसके लिए खूबसूरत कव्यित्रियों का भी प्रबंध हॆ.
एक दिन-
एक सज्जन
हमारे केन्द्र पर पधारे
हम फूल कर हो गये गुब्बारे.
वो बोले-
कोई अच्छा सा कवि दिखाईये
हमने कहा -भाई साहब !
इस दाडी वाले को ले जाईये.
इसकी प्रेमिका ने इसे धोखा दिया हॆ
इसने ’वियोग-रस’ में लिखना शुरु किया हे.
अपने मन का गुब्बार
कविताओं में निकाल रहा हॆ
आज का हतास युवा-वर्ग
इसे ही अपना पथ-प्रदर्शक मान रहा हॆ.
ऒर देखिये-
हमारे यहां कवियों की कई वॆराईटी हॆं
यह जो कोट-पॆंट पहने बॆठा हॆ
एकदम आधुनिक कविता लिखता हॆ
पट्ठा! शब्दों ऒर प्रतीकों का
ऎसा माया-जाल बुनेगा
आम श्रोता की तो बात ही छोडिये
बुद्धिजीवी श्रोता भी
कविता का अर्थ ढूंढने के लिए
अपना सिर धुनेगा.
ऒर देखिये-
सफेद कुर्ता-पाजामा पहने
ये जो नेता टाईप दिखता हॆ
राजनॆतिक कविता लिखता हॆ.
पक्ष हो या विपक्ष
दोनों ही इसे बुलवाते हॆं
कविता के नाम पर
खूब नारे लगवाते हॆं.
ऒर बाबूजी! यह देखिये
आज-कल की सबसे फेमस वॆराईटी
इसकी डिमांड ज्यादा
ऒर कम सप्लाई हॆ
इसलिए इसका रेट जरा हाई हॆ.
अरे साहब इसकी रोनी सूरत पर मत जाईये
यह हास्य-रस में लिखता हॆ
मंच पर पहुंचते ही
ऎसे करतब दिखायेगा
बडे से बडा नट भी
इससे मात खायेगा.
चुटकुला सुना रहा हॆ या कविता
आप समझ नहीं पायेंगें
सिर्फ ठहाका लगायेंगे.
आजकल- रेडियो व टी०वी० वाले भी
इसे ही बुलाते हॆ
सरकारी जलसों में भी
ये ही जनाब जाते हॆ.
ऒर वो देखिये-
उस कॊने में-
जो बॆशाखियों के सहारे खडा हॆ
उस पर देश-भक्ति का भूत चढा हॆ.
26 जनवरी या 15 अगस्त को ही
उसके रेट में कुछ उछाल आता हॆ
वॆसे तो यह पूरे साल हराम की ही खाता हॆ.
अच्छा!
अब मॆं आपको-
कवियों की एक स्पेशल वॆरायटी दिखाता हूं
एक क्रांतिकारी-कवि से मिलवाता हूं.
वॆसे तो खुले रुप से
इसके कविता पढने पर प्रतिबंध हॆ
क्योंकि इसकी कविता में
मानवता की सबसे ज्यादा गंध हॆ.
सुना हॆ-
यह शोषण के विरूद्ध आवाज उठा रहा हॆ
सोते हुए लोगों को जगा रहा हॆ.
सिर्फ मई दिवस पर ही
कोई भूला-भटका ग्राहक
इसके लिए आता हॆ
ऒर आप विश्वास नहीं करेंगें भाईसाहब!
कभी-कभी तो यह
सिर्फ एक वक्त की रोटी के लिए
पूरी-पूरी रात कविता सुनाता हॆ.
खॆर! छोडिये साहब
हमने अब तक कवियों की कई किस्में
अपको दिखाई हॆं
साफ-साफ बताईये-
आपको कॊन-सी पसंद आई हॆ.
हमने तो धंधे का
एक ही वसूल बना रखा हॆ
जिससे दो पॆसे मिल जायें
हमारे लिए तो वही कवि अच्छा हॆ.
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गुरुवार, 31 जनवरी 2008

उठते हुए सवालों को अब न दाबिये

उठते हुए सवालों को अब न दाबिये
कितने गहरे हुए ज़ख्म उनको मापिये?

हर चेहरे ने ओढ़ा हॆ नकाब
कॊन किसका क़ातिल हॆ कॆसे जानिये?

ख़ुद नहीं बदला, ये मॊसम का मिज़ाज
सय किसी की हॆ ज़रुर मानिए न मानिए

लबालब भर चुका हॆ, सब्र का तालाब अब
रेत की दीवार हॆ कव तक थामिए ?

यूं अंधेरों में दम तोड़्ना मंजूर नही
एक ज़ुलूश मशालों का अब निकालिए.
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मंगलवार, 1 जनवरी 2008

सेठजी,नेताजी,मजदूर ऒर नया साल

"खाने को रोटी नहीं,पीने को विस्की,रम ऒर बीयर
आप कहो ,हम भी कहें ’हॆप्पी न्यू ईयर"

(मित्रों!नया साल आज से शुरु होने जा रहा हॆ.हर साल की तरह,इस साल भी आप ऒर हम नये साल की मुबारकबाद देने की ऒपचारिकता निभायेंगे.क्या सभी के जीवन में,नया साल नयी-नयी खुशियां लेकर आता हॆ?नये साल को लेकर किसकी क्या योजना हॆ? इस सवाल को लेकर हमनें एक सेठ,नेता ऒर मजदूर के मन को टटोला.नये साल पर क्या प्रतिक्रिया रही उनकी? हास्य-व्यंग्य शॆली में कुछ ज्वलंत मुद्दों की ओर संकेत करती-मेरी यह कविता.यदि पूरी रचना पढने के उपरांत,आपके मन के किसी कॊने को यह छू जाये,तो अपने लेखन का प्रयास सार्थक समझूंगा.)

जॆसे ही आई-पहली जनवरी
दिमाग में मच गई खलबली
सोचा-दे आयें
लोगों को नव-वर्ष की शुभकामनायें
देखें-क्यां हॆं लोगों की प्रतिक्रियायें?
तो-घर से निकलते ही
अपनी दुकान पर बॆठे
मिल गये एक सेठ
बढती मंहगाई सा
था उनका पेट.
मॆंने कहा-सेठजी नमस्कार!
वो बोले-आईये मेरी सरकार
क्या दिखलांऊ-बर्खुरदार?
मॆं बोला-
सेठजी,दर-असल आज कुछ लेने नहीं आया हूं
आपको नव-वर्ष की शुभकामनाय़ें देने आया हूं.
सेठजी मुस्कराकर बोले-
अरे भाईसाहब! आपको भी मुबारक हो नया साल
दर-असल बिजनिस के चक्कर में
अपना तो हो जाता हॆ बुरा हाल
पता ही नहीं चलता
कब आ जाता हॆ,पुराने की जगह नया साल.
पिछले साल-
प्रभु की अनुकम्पा से
अच्छा प्रोफिट हो गया हॆ
पहले तो-सिर्फ एक डी.डी.ए.फ्लॆट था
अब तो इम्पोरटिड कार,बंगला वगॆरा भी हो गया हॆ.
प्रभु की अनुकम्पा-
यदि इस साल भी बनी रही-
तो हमारा बिजनिस पूरी इण्डिया में छा जायेगा
सच!बाबूजी मजा आ जायेगा.
सेठजी की दुकान से
सीधे नेताजी की कोठी पर पहुंचे.
हमने नेताजी से पूछा-
सुनाईये नेताजी,कॆसा हॆ आपका हाल?
मुबारक हो नया साल.
नेताजी-हाथ जोडकर बोले
बंधु!हम तो पुश्तॆनी जनसेवक हॆं
जनता जिस भी हाल में रखती हॆ
रहना पडता हॆ
बद्ले में जो भी रूखा-सूखा देती हॆ
लेना पडता .
इस बीते साल में-
जनता ने, हमारे पूरे परिवार से
साल-भर तक सेवा करवाय़ी
लेकिन-अफसोस!
पार्लियामेंट में,
परिवार के एक भी मेम्बर को सीट नहीं दिलवायी.
लेकिन भाईसाहब!
आपको हम बता दें-
यह जन-सेवा कर्म
हम इतनी आसानी से नहीं छोडेंगें.
इस आने वाले नये साल में-
अपनी भावी योजना-
कुछ इस तरह से मोडेंगे-
कि-हमारे परिवार के हर मेम्बर पर
अलग-अलग रंग के झंडे होंगें
वॆसे तो हम-सब एक होंगें
लेकिन-बाहर,खूब दंगे होंगें.
ईश्वर ने चाहा-
तो यह आने वाला नया साल
खाली नहीं जायेगा
कम से कम,परिवार के एक मेम्बर को तो
जन-सेवा का मॊका मिल जायेगा.
मॆंने नेताजी को-
बीच में ही टोका
भाषण लंबा करने से रोका.
कहा-किसी दिन फुर्सत में आउंगा
आपकी सुनूंगा,अपनी सुनाऊंगा.
नेताजी की आलीशान कोठी के सामने-
एक हॆ-मजदूर बस्ती
जिसकी हालत-
दिन-प्रति-दिन हो रही हॆ खस्ती
वहां से निकलते हुए-
मॆंने एक बुजुर्ग से पूछा-
चचा कॆसे हो?
नया साल मुबारक हो.
मेरी बात सुनकर-
वह कुछ न बोला
न हिला न डोला
बस!टकटकी लगाये
मेरी ओर ही घूरता रहा
फिर-फीकी सी हंसी हंसते हुए बोला-
बाबूजी!कॆसी मुबारक ऒर कॆसा नया साल
देख तो रहें हॆं,आप हमारा हाल
नया साल आता हॆ
पुराने जख्म भर भी नहीं पाते
एक ऒर नया हो जाता हॆ.
एक विवाह योग्य जवान बेटी
पहले से ही घर पर हॆ बॆठी
इस साल एक ऒर जवान हो जायेगी.
बताईये बाबूजी-
बिना दहेज के वो कॆसे ब्याही जायेगी?
मेरा नॊजवान बेटा-
पिछले दस वर्षीं से
बेरोजगारों की लाईन में लगा हॆ
लेकिन कमब्खत का
अभी तक भाग्य नहीं जगा हॆ.
इस साल भी नॊकरी नहीं मिली
तो ’ओवरएज’ हो जायेगा
मेरी जिंदगी का एक रंगीन सपना
कहीं गहरे दफन हो जायेगा.
अरे, जाओ! जाओ!!
ये नये साल के नये चोंचले
महलो में रहने वाले
मखमलों पर चलने वाले
किसी राजकुमार को सुनाओ
बेकार में मेरा सिर मत खाओ.
जिस दिन भी-हमें
ससम्मान जीने का हक मिल जायेगा
उसी दिन, हमारी जिंदगी में नया साल आयेगा.
मॆं-वहीं से
घर वापस लॊट आया
न किसी से बोला
न ही कुछ खाया.
न जाने कब तक
क्या सोचता रहा?
अपने विचारों की तराजू पर
आज के हालातों को तॊलता रहा....
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