परिचय

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

कोई आये कोई जाये हमको क्या!





कोई आये कोई जाये, हमको क्या

देश चाहे भाड़ में जाये,हमको क्या!


ख़ूब खायेंगे हम !  हलवा-पूरी

चाहे कोई भूखा सोये, हमको क्या!


घूमेंगे हम नये पेंट-कोट में

उसकी चाहे फटे लंगोटी, हमको क्या!


हमारे पास तो आलीशान महल है

उसका चाहे टूटे छप्पर, हमको क्या!


विपदा जब हम पर टूटेगी, तब देखेंगें

अभी तो हम चैन से सोये, हमको क्या!


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मंगलवार, 9 नवंबर 2021

दीपावली पर मुशायरा!









कल दिनाँक 07-11-2021 को,रोहिणी दिल्ली के सैक्टर-25 में,#दिल्ली_अल्पसंख्यक_आयोग के सौजन्य से,एक मुशायरे का आयोजन किया गया।आयोजक थी #इंडियन_पोएट्स_यूनियन'।मुशायरे का आयोजन  दीपावली के उपलक्ष्य में,हिंदी-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया।इस मौके पर आयोग के अध्यक्ष #ज़ाहिर_खान ' खास मेहमान की हैसियत से मौजूद थे।

जिन  शायरों ने इस मुशायरे में ,अपने अपने कलाम पढ़े, उनमें आपके इस दोस्त #विनोद_पाराशर के अलावा शामिल थे-#रामश्याम_हसीन,#असलम_बेताब,#असलम_जावेद, #शाहरुख_सेफी,#रीता_अदा,#संगीता_चौहान_सदफ़,#सुनैना _जैसवाल,#गुलफिशा_इदरीश।संचालन-#शकील_बरेलवी व #नसीम_अहमद ने किया।

Reeta Kumar रामश्याम 'हसीन' Aslam Betaab Sangeeta Chauhan Sadaf Shakeel Bareilvi

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

दीपोत्सव पर काव्य-गोष्ठी!

 दीपोत्सव के उपलक्ष्य में-कवि गोष्ठी!




आज के इस भौतिकतावादी युग में,जहाँ ज्यादातर लोग धन-संपत्ति इकट्ठा करने की अंधी दौड़ में लगे हैं, वहीं कुछ लोग अपने सीमित संसाधनों के बल पर 'हिंदुस्तानी भाषाओं'के संवर्धन व संरक्षण में लगे हैं।'सुधाकर पाठक' एक ऐसे ही शख्स  हैं,जो अपनी संस्था'हिंदुस्तानी भाषा अकादमी'के माध्यम से न केवल'हिंदी' अपितु सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन का पुनीत कार्य,पिछले कई वर्षों से अनवरत कर रहे हैं।उनका मानना है कि यदि वाकई हिंदी को अपने देश की 'राजभाषा' बनाना है, तो हिंदुस्तान की सभी भाषाओं को साथ लेकर चलना पड़ेगा।केवल अंग्रेजी के विरोध के सहारे, भारतीय भाषायें अपना विकास नहीं कर सकतीं।
श्री पाठक समय समय पर,अपनी संस्था के  विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से,भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों, कवियों, लेखकों,अध्यापकों व छात्रों को प्रोत्साहित करते रहते हैं।कार्यक्रमों की इसी श्रृंखला में, रोहिणी दिल्ली(भारत) में,दीपावली के उपलक्ष्य में हिंदी भाषा की एक कवि-गोष्ठी का आयोजन, संस्था के सभागार में, दिनाँक 31-10-2021 को किया गया,जिसमें 30 से अधिक कवितायें ने विभिन्न विषयों पर अपनी-अपनी कवितायें पढ़ी।
कार्यक्रम का प्रारम्भ दीप प्रज्वलन से किया गया।कवि गोष्ठी के अध्यक्ष 'सुधाकर पाठक' व 'मंच पर उपस्थित उनके सहयोगी विनोद पाराशर व सीमा डोवाल ने सामूहिक रूप से दीप प्रज्वलित किया।
आज की युवा पीढ़ी पर,यह आरोप लगाया जाता है कि वह अपने आप  में ही मस्त रहती है।समाज में हो रही घटनाओं से उनका कोई सरोकार नहीं है।इस काव्य- गोष्ठी में कविता पढ़ने वाले आधे से अधिक  कवि युवा थे।युवा मन में प्रेम की हिलोरें उठना स्वभाविक है।ज्यादातर युवा कवियों की कविता का विषय प्रेम ही रहा।'अशोक चावला'की प्रेम पर लिखी गयी कविता की पक्तियाँ थीं-
'नैन फिर से भरे आपकी याद में
घाव हैं फिर से हरे,आपकी याद में'
बेवफा गाजीपुरी, राजू खान,हिमांशु मिश्रा, संजय घायल,अमित अंनत, विनीत पांडेय, विनीत मिश्रा'अविरल' 'यशोदानंदन खुरापाती तथा सीमा शर्मा सागर की कविता का विषय भी प्रेम ही था।
मर्यादा पुरुषोत्तम'राम' के चरित्र पर भी कवितायें सुनने को मिली।समाज में कुछ लोग राम के अस्तित्व व उनकी मर्यादा पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।ऐसे लोगों को लताड़ लगाते हुए'मनीषा सांवली'कहती है-
'बहुत सरल है दोषारोपण, चाहे जितने दोष लगाओ
राम रहे मर्यादित,थोड़ा सोच-समझकर प्रश्न उठाओ'
मनोज मिश्र'कप्तान' व पुनीत पांचाल ने भी  राम पर ही अपनी कविता पढ़ी।
दीपोत्सव के उपलक्ष्य में,इस कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया 

।इसलिए 'दीपावली'  विषय पर यदि कविता न होती,तो आयोजन कुछ अधूरा-सा रहता।कुमार राघव,कमलेश झा,मेघ श्याम मेघ व ज्ञानेंद्र वत्सल ने इस विषय पर अपनी कविता पढ़ी।ज्ञानेंद्र की कविता की पक्तियाँ थीं-
'मैं दीवाली का दिया हूँ, रातभार मुझको जलाना
पारना काजल हमीं से और पलकों पर लगाना'
इसके अलावा समाज में, गिरते मानव-मूल्यों पर भी कवितायें पढ़ी गयीं।युवा दोहाकार शिव सागर तिवारी का एक दोहा देखें-
'लालच ऐसा शत्रु जो रहता बहुत करीब
जिसके मन में आ गया,उसका फूटा नसीब'
इसी तरह से,अनुराग अगम की कविता की पंक्ति -
'या तो दुनियादारी रख,या अपनी खुद्दारी रख'
इनके अलावा-अभी आज़मी, गोपाल गुप्ता, संजीव सक्सेना, शिव मोहर,गुलाफ्शां इदरीसी,अभिषेक पांडेय, अमित कुमार,जबी उल्लाह, ज्योति मिश्रा, मोहम्मद फ़रहान, राकेश मिश्रा, प्रीति, रिंकू घायल,कृष्ण माल्या, डॉ सत्यवीर सिंह,सीमा डोवाल व विनोद पाराशर ने भी अपनी अपनी कवितायें पढ़ी।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता 'सुधाकर पाठक' ने  व संचालन युवा कवि ज्ञानेंद्र वत्सल ने किया।







बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

सतमोला कवियों की चौपाल-कवि सम्मेलन!



'साधना चैनल' पर लगी'सतमोला कवियों की चौपाल!
'सतमोला कवियों की चौपाल' के 670 वें एपिसोड का प्रीमीयर शो आज रात 7-30 बजे 'साधना'चैनल पर हुआ।आज के इस एपिसोड में,मेरे अलावा, मेरे जिन अन्य कवि मित्रों ने अपनी कवितायें पढ़ी, उनमें शामिल थे,पंडित सुरेश नीरव,निशा शर्मा, सुनहरी लाल वर्मा'तुरंत, प्रवीण राही, अंजना अंजुम, प्रशांत अवस्थी व रीता'जयहिंद! मेरे कुछ मित्र इस एपिसोड का लाइव प्रसारण, उस समय नहीं देख पाये।उनके लिये वीडियो नीचे दिये गये लिंक पर उपलब्ध है।प्रीमियम शो के कुछ चित्र-यहाँ साझा किये जा रहे हैं।
https://youtu.be/cu9WRBwqVqc
Suresh Neerav Jai Ho प्रशांत अवस्थी Rita Jaihind Arora प्रवीण आर्य सतमोला कवियों की चौपाल
Seema Sagar Sharma Anuj Sharma Monika Aalok Sharma  Jai Singh Arya  Sanjay Jain



गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

डर लगता है!



डर लगता है


किसी के यहाँ जाने में
अपने यहाँ बुलाने में
डर लगता है।
बच्चों को गले लगाने में
यारों से हाथ मिलाने में
डर लगता है।
दुकान से सब्जी लाने में
तुरंत उसे पकाने में
डर लगता है।
टी. वी.का स्विच दबाने में
खबरों पर उसे लगाने में
डर लगता है।
उनको पास बुलाने में
धीरे से हाथ दबाने में
डर लगता है।
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शनिवार, 29 जून 2019

दुनिया मुट्ठी में!

दुनिया मुट्ठी में!

उसने कहा-
"कर लो दुनिया मुट्ठी में!"
सभी ने-
मुट्ठियाँ बंद कर लीं!
यूँ लगा-
जीवन की सारी खुशियाँ
अलाद्दीन के
चिराग में भर लीं।
अब हमें-
नहीं चाहिए
वो दीवार घड़ी
जो बीते समय का अहसास कराये
नहीं चाहिए
वो कैमरा-
जो जीवन की सच्ची तस्वीर दिखाये
और नहीं चाहिए
माँ के पल्लू में बधा मुड़ा-तुड़ा नोट
जो अपनेपन का अहसास कराये।
अब हमारे पास-
 मायावी सपने हैं
बेगाने से अपने हैं
न जाने हम कहाँ खो गये हैं
कहने को तो साथ- साथ हैं
पर सच में,बहुत दूर हो गये हैं।
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बुधवार, 18 मार्च 2015

बच्चे अब बड़े हो रहे हैं





मैंने-
छुपाकर रख दिया है
वो पैन!
जिससे कभी
प्रेम-पत्र लिखा था
फाड़ डाली
वो डायरी!
जिसमें कभी-
सूखा गुलाब रखा था
और-
जला डालीं
वो रंगीन किताबें!
जिन्हें कभी
छुप-छुपकर पढ़ा था।
मैं नहीं चाहता-
फिर से दोहरा जाये
वही पुराना इतिहास
जो कभी-
मैंने रचा था।