परिचय

शुक्रवार, 6 जुलाई 2007

फर्क

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फर्क
कोई खास नहीं हॆ
तुम्हारे ऒर मेरे बीच
तुम-
खांसते हो,
खखारते हो,
ऒर एक बेचॆनी सी महसूस करते हो।
मॆ-
खांसता हूं
खखारता हूं
एक बेचॆनी सी महसूस करता हूं
ऒर-
उस बेचॆनी को
उलट देता हूं
एक कागज पर
तुम अगर चाहो तो
इसे कविता कह सकते हो।
******

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

वाह, कहे देते हैं कविता-वैसे वाकई कविता तो है.

Satyendra Prasad Srivastava ने कहा…

बहुत ही अच्छी कविता।

Divine India ने कहा…

हम कह सकते है कि यह नई कविता है…।