परिचय

मंगलवार, 10 जुलाई 2007

गजल
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चार अक्षर क्या पढ गया बेटा
कुछ ज्यादा ही अकड गया बेटा।
न राम-रहीम, न दुआ-सलाम
’ऒ’ ’टा-टा’ से लिपट गया बेटा
कुछ ज्यादा ही.......बेटा।
कहां गई वो मर्दानी मूछ-दाडी
नपुसंकों की जमात में मिल गया बेटा
कुछ ज्यादा ही........बेटा।
बाहर से हीरो, अन्दर से जीरो
यह किस चक्कर में पड गया बेटा
कुछ ज्यादा ही........बेटा।
न रहे अपने ऒर न ही अपनापन
यह कॆसा दॊर चल गया बेटा ?
कुछ ज्यादा ही.........बेटा।
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1 टिप्पणी:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

रचना मे सत्यता की झलक है।

"न रहे अपने ऒर न ही अपनापन
यह कॆसा दॊर चल गया बेटा ?"