परिचय

रविवार, 16 अगस्त 2009

लुटते हुए देश को बचाओ साथियो !


लुटते हुए देश को बचाओ साथियों!

कदम से कदम मिलाओ साथियों,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियों.

कोना-कोना देश का जल रहा हॆ,
शासन-तंत्र जनता को छल रहा हॆ,
कॆसी-कॆसी चालें यह चल रहा हॆ,
अंधेरे में रहे क्यों?बताओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.

इधर देखो कुत्ता बिस्कुट चाट रहा हॆ,
उधर देखो मजदूर भूखा हांफ रहा हॆ,
कपडे़ बुनने वाला खुद कांप रहा हॆ,
ऎसा भेद-भाव क्यों? बताओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.

खुले-आम चोर-लुटेरे घूम रहे हॆं,
मां-बहनों की इज्ज़त लूट रहे हॆं,
पुलिस वाले निर्दोषों को पीट रहे हॆं,
सहें यह अत्याचार क्यों?बताओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.

पढना-लिखना आज का बेकार हो गया,
शिक्षा जॆसा कर्म भी व्यापार हो गया,
विधालय भी भ्रष्टाचार का शिकार हो गया,
ऎसा शिक्षा-तंत्र क्यों?बताओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.

ऎरे-गॆरे नत्थू खॆरे,सन्तरी हो गये
जेल में होना था जिन्हें,मंत्री हो गये
बन्दूकों के व्यापारी भी तंत्री हो गये
इनके चेहरे से नक़ाब उठाओ साथियो
लुटते हुए देश को,बचाओ साथियो.

कॊन कहता देश यह आज़ाद हो गया?
पहले से भी ज्यादा यह गुलाम़ हो गया
अपने ही कुछ लुटेरों से,बर्बाद हो गया,
नयी कोई मशाल अब,जलाओ साथियो,
लुटते हुए देश को बचाओ साथियो.
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3 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

सच्चाई को उकेरती इक शानदार रचना,। बधाई स्वीकारे

Vinashaay sharma ने कहा…

अति उत्तम,आज के सन्दर्भ की रचना

समयचक्र ने कहा…

शानदार रचना बधाई