====
कॆसे-कॆसे हादसे होने लगे हॆ आजकल
मल्लाह ही नाव को डुबोने लगे हॆं आजकल.
जहरीली हवा हुई तो दरखतों को दोष क्य़ों


घर के पहरेदारों की मुस्तॆदी तो देखिए
चॊखट पे सिर रखकर सोने लगे हॆं आजकल।
बंद मुट्ठियों के हॊसले जानते हॆं वो
उगलियों पर हमले होने लगे हॆं आजकल।
कल तक थे जो झुके-झुके से
तनकर खडे होने लगे हॆं आजकल।
*******
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें