परिचय

रविवार, 19 अगस्त 2007

दोस्ती

मेरे पास
नहीं हॆं-
जिन्दगी की वो रंगीन तस्वीरें
जिनसे तुम्हें रिझा सकूं।
मेरे पास
नहीं हॆं वो मखमली हाथ
जिनसे तुम्हें सहला सकूं।
मेरे पास
नहीं हॆं वो लोरियां
जिनसे तुम्हें सुला सकूं।
मेरे पास हॆ
कूडे के ढेर से
रोटी का टुकडा ढूंढते
एक अधनंगे बच्चे की
काली ऒर सफेद तस्वीर
देखोगे ?
मेरे पास हॆं
एक मजदूर के
खुरदुरे हाथ
जो वक्त आने पर
हथॊडा बन सकते हॆं
अजमाओगे ?
मेरे पास हॆ
सत्य की कर्कश बोली
जॆसे ’कुनॆन’ की कडवी गोली
खाओगे ?
यदि नहीं
तो माफ करना
मॆं
आपकी दोस्ती के काबिल नहीं।
*******

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सही...बधाई.

बसंत आर्य ने कहा…

कम शब्दो मे अधिक बात. बहुत अच्छा.

ghughutibasuti ने कहा…

कविता अच्छी लगी । लिखते रहियेगा ।
घुघूती बासूती

गरिमा ने कहा…

दोस्त वही है
जो सत्य का आईना दिखलाये
झुठी कहानियो से बचाकर
जिन्दगी का गीत सुनाये
इतना ही काफी है
हमारी दोस्ती के लिये

बस ऐसे ही...

भाव छु गये दिल को... सच मे ऐसे ही दोस्त दोस्ती के काबिल होते हैं