मेरे जीवन के खट्टे-मीठे
अनुभवों की काव्यात्मक
अभिव्यक्ती का संग्रह हॆ-
यह ’नया घर’.
हो सकता हॆ मेरा कोई अनुभव
आपके अनुभव से मेल खा जाये-
इसी आशा के साथ ’नया घर’
आपके हाथों में.
परिचय
सोमवार, 28 मई 2007
चुप्पी
उन्हें- कहने दीजिये हमें- चुप्प रहने दीजिये। उनका- कुछ भी कहना व्यर्थ हॆ जब तक आदमी सतर्क हॆ ऒर- हमारी चुप्पी का भी एक विशेष अर्थ हॆ। *****
1 टिप्पणी:
वाह! क्या खूब लिखा है।
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