परिचय

सोमवार, 4 जून 2007

हे मेरे परम-पूज्य anधविश्वासी पिता !

हे मेरे परम-पूज्य अंधविश्वासी पिता !
कम से कम
अपने बुढापे का
मेरी जवानी का
कुछ तो ख्याल किया होता
सुरसा-मुख-सम
बढती जा रही
इस मंहगाई के युग में,
ज्यादा नहीं,
सिर्फ एक
अक्ल का काम किया होता.
बजाय-
इस क्रिकेट टीम के
चार सदस्यों का
सुखमय हमारा संसार होता.
खुद खा सकता
हमें खिला सकता
खुद डूबा
मुझे भी ले डूबा.
काश !
हमारी भूमिकाएं बदल जाती
जो हुआ
शायद वो सब न होता.
हे मेरे परम-पूज्य अंधविश्वासी पिता !
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