परिचय

गुरुवार, 24 मई 2007

नकाब

मॆंने-
सिलवाकर रखे हॆं
कई नकाब।
जॆसे भी
माहॊल में जाता हूं
वॆसा ही-
नकाबपोश हो जाता हूं।
तब लोग-मुझे नहीं
मेरे नकाब को जानते हॆं।
ऒर-
मेरी हर बात को
पत्थर की लकीर मानते हॆ।
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7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत खूब!

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

अच्छा है

अनूप शुक्ल ने कहा…

अच्छा है!

संजय बेंगाणी ने कहा…

क्या बात है.

Monika (Manya) ने कहा…

बहुत थोड़े में .. आज की बनावटी जिंदगी का सच कह दिया.........

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आज का सच यही है।बहुत बढियां लिखा है।

Divine India ने कहा…

परदे के पीछे सत्य के अर्थ को कोई जानकर भी नहीं जानना चाहता…बहुत अच्छे!!!