परिचय

बुधवार, 25 अप्रैल 2007

गुब्बारा

क्या-मॆं
तुम्हारे लिए
सिर्फ एक गुब्बारा हूँ
जिसमें जब जी चाहे
हवा भरो
कुछ देर खेलॊ
ऒर फिर फोड दो।
काश !
तुम भी गुब्बारा होते
कोई हवा भरता
कुछ देर खेलता
ऒर फिर-फोड देता
तब तुम
समझ पाते
एक गुब्बारे के फूटने का दर्द
क्या होता हॆ?
किसी बडे या बच्चे के द्वारा
गुब्बारा फोडे जाने में
बडा भारी अन्तर होता हॆ।
बच्चा-
स्वयं गुब्बारा नहीं फोडता
बल्कि गुब्बारा उससे फूट जाता हॆ।
वह गुब्बारा फूटने पर
तुम्हारी तरह कहकहे नहीं लगाता
ब्लकि-
रोता,गिडगिडाता या फिर
आँसू बहाता हॆ।
ऒर फिर-
तुमनें तो
बाँध लिया था
मुझे एक घागे से
ताकि तुम्हारी मर्जी से उड सकूँ।
तुम कभी धागे को
ढीला छोड देते थे
तो कभी-अपनी ऒर खींच लेते थे।
आह!
कितना खुश हुआ था-मॆं
जब तुमने-
धागे को स्वयं से जुदा करते हुए
कहा था-
कि-अब तुम आज़ाद हॊ।
लेकिन-
हाय री विडम्बना !
ये कॆसी आज़ादी ?
कुछ देर बाद ही
तुमनें जेब़ से पिस्तॊल निकाली
ऒर लगा दिया निशाना
मेरा अस्तित्व !
खण्ड-खण्ड हो
असीम आकाश से
कठोर धरातल पर आ पडा।
काश!
मॆं गुब्बारा न होता
ऒर अगर होता
तो मुझमें
गॆस नहीं-
हवा भरी होती-हवा
वही हवा
जो नहीं उडने देती
गुब्बारे को
खुले आकाश में।
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2 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

आप अच्छा लिखते हैं । नारद पर अपना ब्लॉग डालिये । अधिक लोग पढ़ सकेंगे ।
घुघूती बासूती

विनोद पाराशर ने कहा…

घुघूती जी,
आपके सुझाव का धन्यवाद.नारद जी का आशिर्वाद लेने के उपरांत,मेरे’नया घर’में मेहमानों का आना
शुरु हो गया हॆ.समयाभाव व तकनीकि जानकारी न होने के कारण अभी ब्लाग की साज-सज्जा भी ढंग से नहीं कर पाया हूं.आप तो जानती ही हॆं,जब घर
नया-नया बसता हॆ,तो कितनी मुश्किलें आती हॆ.आज-कल इसी दॊर से गुजर रहा हूं.