परिचय

सोमवार, 23 अप्रैल 2007

कूप-मंडूक

तब ऒर अब
भूत ऒर वर्तमान
तब-मॆं भूत था
लेकिन-अब वर्तमान।
मेरा भूत-कूप-मंडूक
सोचता था-सर्वग्य़ानी हूं।
आकाश में....
एक...दो...दस...बस
इतने ही तारे हॆ।
दुनिया इस कुएं से बडी नही
जिसमें मॆं रोज धूमता हूं।
लेकिन-
वर्तमान से सामना होते ही
टूट गई-कुएं की मुंडेर
ऒर-अब
खुले दल-दल में फंसा
कर रहा हूं कोशिश
सर्वग्यानी होने की।
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1 टिप्पणी:

ghughutibasuti ने कहा…

वाह!
घुघूती बासूती