मेरे जीवन के खट्टे-मीठे
अनुभवों की काव्यात्मक
अभिव्यक्ती का संग्रह हॆ-
यह ’नया घर’.
हो सकता हॆ मेरा कोई अनुभव
आपके अनुभव से मेल खा जाये-
इसी आशा के साथ ’नया घर’
आपके हाथों में.
परिचय
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2007
अभिमन्यु का आत्मद्वन्द्व
आज/फिर कॊरवों ने मेरे चारों ओर चक्रव्यूह रचा हॆ। मॆं/नहीं चाहता चक्रव्यूह से निकल भागना चाहता हूं इसे तोडना। लेकिन- नहीं तोड पा रहा हूं। काश! तुम कुछ देर ऒर न सोयी होती मां। ***
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
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